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आ या॑हि॒ शश्व॑दुश॒ता य॑या॒थेन्द्र॑ म॒हा मन॑सा सोम॒पेय॑म्। उप॒ ब्रह्मा॑णि शृणव इ॒मा नोऽथा॑ ते य॒ज्ञस्त॒न्वे॒३॒॑ वयो॑ धात् ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā yāhi śaśvad uśatā yayāthendra mahā manasā somapeyam | upa brahmāṇi śṛṇava imā no thā te yajñas tanve vayo dhāt ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। या॒हि॒। शश्व॑त्। उ॒श॒ता। य॒या॒थ॒। इन्द्र॑। म॒हा। मन॑सा। सो॒म॒ऽपेय॑म्। उप॑। ब्रह्मा॑णि। शृ॒ण॒वः॒। इ॒मा। नः॒। अथ॑। ते॒। य॒ज्ञः। त॒न्वे॑। वयः॑। धा॒त् ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:40» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:12» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:3» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा आदिकों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) अत्यन्त धन के देनेवाले ! जो (यज्ञः) सद्विद्या और व्यवहार को बढ़ानेवाला व्यवहार (नः) हम लोगों के और (ते) आपके (तन्वे) शरीर के लिये (वयः) जीवन को (धात्) धारण करता है उससे (अथा) इसके अनन्तर (इमा) इन (ब्रह्माणि) धनों को वेदों को आप (महा) बड़े (मनसा) विज्ञानयुक्त चित्त से (उशता) कामना करते हुए विद्वान् के साथ (शृणवः) सुनिये और (शश्वत्) निरन्तर (ययाथ) प्राप्त हूजिये तथा (सोमपेयम्) पीने योग्य सोमलता के रस को पीने के लिये (उप, आ, याहि) समीप प्राप्त हूजिये ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वान् राजा आदि जनो ! आप लोग विद्वानों के साथ मेल कर, बुद्धि और बल के बढ़ानेवाले आहार और विहार को कर, परस्पर विचार करके ब्रह्मचर्य्य आदि से अवस्था को बढ़ावें, जिससे सब महाशय आप्त होवें ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजादिभिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! यो यज्ञो नस्ते च तन्वे वयो धात्तेनाथेमा ब्रह्माणि त्वं महा मनसोशता शृणवः शश्वद्ययाथ सोमपेयं पातुमुपायाहि ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (याहि) आगच्छ (शश्वत्) निरन्तरम् (उशता) कामयमानेन विदुषा सह (ययाथ) गच्छ (इन्द्र) परमधनप्रद (महा) महता (मनसा) विज्ञानयुक्तेन चित्तेन (सोमपेयम्) सोमश्चासौ पेयश्च तम् (उप) (ब्रह्माणि) धनानि वेदान् वा (शृणवः) शृणुयाः (इमा) इमानि (नः) अस्माकम् (अथा) अनन्तरम्। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (यज्ञः) सद्विद्याव्यवहारवर्धको व्यवहारः (तन्वे) शरीराय (वयः) जीवनम् (धात्) दधाति ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो राजादयो जना ! यूयं विद्वद्भिः सह सङ्गत्य बुद्धिबलवर्द्धकावाहारविहारौ सदा कृत्वा परस्परं विचार्य्य ब्रह्मचर्यादिनाऽऽयुर्वर्द्धयत येन सर्वे महाशया आप्ता भवेयुः ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वान राजा ! तू विद्वानांबरोबर मेळ घालून बुद्धी व बल वाढविणारा आहार-विहार, परस्पर विचार व ब्रह्मचर्य इत्यादींनी दीर्घायु व्हावेस, ज्यामुळे सर्व लोक विद्वान व्हावेत. ॥ ४ ॥